Tuesday, 18 February 2020

स्वामी दयानंद सरस्वती



(स्वामी दयानंद सरस्वती )

         महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी (१८२४-१८८३) आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक थे। उनके बचपन का नाम 'मूलशंकर था |
        स्वामी दयानंद  सरस्वती जी  का जन्म १२ फ़रवरी टंकारा में सन् १८२४ में मोरबी (मुम्बई की मोरवी रियासत) के पास काठियावाड़ क्षेत्र (जिला राजकोट), गुजरात में हुआ था।

  • शिवरात्रि की घटना - चूहा और शिवजी का प्रसाद खाना जिससे इश्वर  की आस्था पर संदेह हुआ  ।
  • अपना चाचा और बहन की हैजे में मृत्यु से उनको वैराग्य प्रवल  हुआ |
  • फाल्गुन कृष्ण संवत् १८९५ में शिवरात्रि के दिन उनके जीवन में नया मोड़ आया।   वे घर से निकल पड़े और यात्रा करते हुए वह गुरु विरजानन्द के पास पहुंचे |
  • महर्षि दयानन्द ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत् १९३२(सन् १८७५) को गिरगांव मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की। 
  • उन्होंने ईसाई और मुस्लिम धर्मग्रन्थों का भली-भांति अध्ययन-मन्थन किया|
  • अपने महाग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में स्वामीजी ने सभी मतों में व्याप्त बुराइयों का खण्डन |
  • उन्होंने जन्म अनुसार जाती का विरोध किया तथा कर्म के आधार पर वेदानुकूल वर्ण-निर्धारण की बात कही|
  • दलितोद्धार के पक्षधर थे।
  • उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा के लिए प्रबल आन्दोलन चलाया
  • उन्होंने बाल विवाह तथा सती प्रथा का निषेध किया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया।
  •  वे योगी थे तथा प्राणायाम पर उनका विशेष बल था।
  •  पराधीन आर्यावर्त (भारत) में यह कहने का साहस सम्भवत: सर्वप्रथम स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ही किया था कि "आर्यावर्त (भारत), आर्यावर्तियों (भारतीयों) का है"।
  •  हमारे प्रथम स्वतन्त्रता समर, सन् १८५७ की क्रान्ति की सम्पूर्ण योजना भी स्वामी जी के नेतृत्व में ही तैयार की गई थी और वही उसके प्रमुख सूत्रधार भी थे।
  • स्वामी जी के रसोइए कलिया उर्फ जगन्नाथ को अंग्रेज अपनी तरफ मिला कर उनके दूध में पिसा हुआ कांच डलवा दिया। जिससे उन्होंने शरीर छोड़ा।







Source - विकिपीडिया


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