पंचगव्य घटक - अधिक गुणवत्ता वाली पञ्चगव्य की विधि बताया गया है | सर्व सुलभ न होने पर कम से कम देशी प्रजाति गाय के पंचगव्य ही उपयोगी है | ( जर्सी या होलिश्तिन कभी नहीं )|
- दूध - सफ़ेद देशी गाय = १६ भाग
- गोमय रस - काली देशी गाय = १ भाग
- गौमूत्र - कपिला वर्ण देशी गाय = २ भाग
- दही - कोई भी देशी गाय = ४ भाग
- घी - कोई भी देशी गाय = ५ भाग
- कुशोदक ( पूजा पाठ में उपयोग होने वाला कुश ( कुशा ) को जल में भिगो कर कुछ घंटे रखें और बाद में पानी को आवश्यकता अनुसार उपयोग करें )
मात्रा - स्वस्थ व्यक्ति २५ से १०० मि.ली. एवं रोगों में वैद्यकीय सलाह अनुसार
- 1. गौमूत्र :-
गोमूत्रं सर्वशुद्धयर्थं पवित्रं पापशोधनं,
आपदो हरते नित्यं पात्रे तन्निक्षिपाम्यहं।
- 2. गोमय रस
अग्रमग्रश्चरन्तीनां औषधीनां रसोदभवं,
तासां वृषभपत्नीनां पात्रे तन्निक्षिपाम्यहं।
- 3. गौदुग्ध
पयः पूण्यतमं प्रोक्तं धेनुभ्यश्च समृद्भवं,
सर्वशुद्धिकरं दिव्यं पात्रे तन्निक्षिपाम्यहं।
- 4. गौ दधि
चंद्रकुन्दसमं शीतं स्वच्छे वारि विवर्जितं,
किंचिदाम्लरसाले च क्षियेत् पात्रे तन्निक्षिपाम्यहं।
- 5. गौघृत
इदं घृतं महदिव्यं पवित्रं पापशोधनं,
सर्वपुष्टिकरं चैव पात्रे तन्निक्षिपाम्यहं।
- 6. कुशोदक
कुशमूले स्थितो ब्रह्मा कुशमध्ये जनार्दन,
कुशाग्रे शंकरो देवस्तेन युक्तं करोम्यहं।
यत् त्वगस्थिगतं पापं देहे तिष्ठतिमामके,
प्राशनात् पंचगव्यस्य दहत्वग्निरिवेन्धनं।
हे अग्निदेव ! हमारे शरीर में, हड्डी में जो भी रोग है उन के नाश करने के लिए हम पंचगव्य का पान कर रहे हैं | हमारे मन, बुद्धिके दोष और शारीर के दोषों को हरण करेंगे ..... इस लिए ये पंचगव्य पान कर रहे हैं , ऐसा मन में बोल कर पंचगव्य पान करें
|# पूज्य बापूजी
दूसरी विधि
गोमूत्रं गोमय क्षीरं दधि सर्पि कुशोदकम् । पंचचगव्य मिदम् प्रोक्तम्महापातक नाशनम् ॥
--विष्णु धर्म
- तीन भाग देसी गांय का शकृत (गोबर) का रस ,
- तीन ही भाग देसी गांय का कच्चा दूध,
- दो भाग देसी गांय के दूध की दधि,
- एक भाग देसी गांय का घृत
- आधा अंश गौमूत्र
( इन्हें मिश्रित कर लें विष्णु धर्म में कहा गया है जितना पंचगव्य बनाना हो उसका आधा अंश गौमूत्र का होना चाहिए |
अर्थात उक्त मिश्रण जितनी मात्र में हो उतने ही मात्र में गौमूत्र होना चाहिए,)
अर्थात उक्त मिश्रण जितनी मात्र में हो उतने ही मात्र में गौमूत्र होना चाहिए,)
- शेष कुशाजल होना चाहिए ।)
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