परमपुरुषार्थ वर्णन
वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! यह जो शब्द है कि "दैव हमारी रक्षा करेगा" सो किसी मूर्ख की कल्पना है । हमको तो दैव का आकार कोई दृष्टि नहीं आता और न कोई दैव का आकार ही जान पड़ता है और न दैव कुछ करता ही है । मूर्ख लोग दैव दैव कहते हैं, पर दैव कहते हैं, पर दैव कोई नहीं है, इसका पूर्व का कर्म ही दैव है । हे रामजी! जिस पुरुष ने अपने पुरुषार्थ का त्याग किया है और देवपरायण हुआ है कि वह हमारा कल्याण करेगा वह मूर्ख है,क्योंकि अग्नि में जा पड़े और दैव निकाल ले तब जानिये कि कोई दैव भी है, पर सो तो नहीं होता । स्नान, दान, भोजन आदिक त्याग करके चुप हो बैठे और आप ही दैव कर जावे सो भी किये बिना नहीं होता इससे दैव कोई नहीं, अपना पुरुषार्थ ही कल्याणकर्ता है । हे राम जी! जीव का किया कुछ नहीं होता और दैव ही करने वाला होता तो शास्त्र और गुरु का उपदेश भी न होता । इससे स्पष्ट है कि सत्शास्त्र के उपदेश से अपने द्वारा इसको वाञ्छित पदवी प्राप्त होती है इससे और जो कोई दैव है सो व्यर्थ है । इस भ्रम को त्याग करके सन्तों और शास्त्रों के अनुसार पुरुषार्थ करे तब दुःख से मुक्त होगा । हे रामजी! और दैव कोई नहीं है इसका पुरुषार्थ जो स्पन्द है सोई दैव है, हे रामजी! जो कोई और दैव करनेवाला होता तो जब जीव शरीर को त्यागता है और शरीर नष्ट हो जाता है--कुछ क्रिया नहीं होती क्योंकि चेष्टा करनेवाला त्याग जाता है तब भी शरीर से चेष्टा कराता सो तो चेष्टा कुछ नहीं होती, इससे जाना जाता है कि दैव शब्द व्यर्थ है । हे रामजी! पुरुषार्थ की वार्ता अज्ञानी जीव को भी प्रत्यक्ष है कि अपने पुरुषार्थ बिना कुछ नहीं होता । गोपाल भी जानता है कि मैं गौओं को न चराऊँ तो भूखी ही रहेंगी । इससे वह और दैव के आश्रय नहीं बैठ रहता, आप ही चरा ले आता है । हे रामजी! दैव की कल्पना भ्रम से करते हैं । हमको तो दैव कोई दृष्टि नहीं आता और हाथ, पाँव, शरीर भी दैव का कोई दृष्टि नहीं आता । अपने पुराषार्थ से ही सिद्धता दृष्टि आती है । जो कोई आकार से रहित दैव कल्पिये तो भी नहीं बनता , क्योंकि निराकार और साकार का संयोग कैसे हो । हे रामजी! दैव कोई नहीं है केवल अपना पुरुषार्थ ही दैवरूप है । जो राजा ऋद्धि सिद्धि संयुक्त भासता है सो भी अपने पुरुषार्थ से ही हुआ है । हे रामजी! ये जो विश्वामित्र हैं,इन्होंने दैव शब्द दूर ही से त्याग दिया है । ये भी अपने पुरुषार्थ से ही क्षत्रिय से ब्राह्मण हुए हैं और भी जो बड़े बड़े विभूतिमान् हुए हैं सो भी अपने पुरुषार्थ से ही दृष्टि आते हैं । हे रामजी! जो दैव पढ़े बिना पण्डित करे तो जानिये दैव ने किया, पर पढ़े बिना तो पण्डित नहीं होता । जो अज्ञानी से ज्ञानवान् होते हैं सो भी अपने पुरुषार्थ से ही होते हैं । इससे दैव कोई नहीं । मिथ्या भ्रम को त्यागकर सन्त जनों और सत्शास्त्रों के अनुसार संसारसमुद्र तरने का प्रयत्न करो । तुम्हारे पुरुषार्थ बिना दैव कोई नहीं । जो और दैव होता तो बहुत बेर कियावाला भी अपनी क्रिया को त्याग के सो रहता कि दैव आप ही करेगा, पर ऐसे तो कोई नहीं करता । इससे अपने पुरुषार्थ बिना कुछ सिद्ध नहीं होता । जो कुछ इसका किया न होता तो पाप करनेवाले नरक न जाते और पुण्य करनेवाले स्वर्ग न जाते परन्तु पाप करने बाले नरक में जाते हैं और पुण्य करनेवाले स्वर्ग में जाते हैं; इससे जो कुछ प्राप्त होता है सो अपने पुरुषार्थ से ही होता है । हे रामजी! जो कोई ऐसा कहे कि कोई दैव करता है तो उसका शिर काटिये जो वह दैव के आश्रय जीता रहे तो जानिये कि कोई दैव है, पर सो तो जीता कोई भी नहीं । इससे दैव शब्द को मिथ्या भ्रम जानके सन्त जनों और सत्शास्त्रों के अनुसार अपने पुरुषार्थ से आत्मपद में स्थित हो ।
*इति श्रीयोगवाशिष्ठे मुमुक्षुप्रकरणे परमपुरुषार्थ वर्णनन्नामष्टमस्सर्गः ॥ 8 ॥*
# ShriYogVashishth #Maharamayan
No comments:
Post a Comment