Sunday, 25 August 2019

मेरे जीवन में भगवान श्रीकृष्ण



श्री कृष्ण 


  जन्माष्टमी के अवसर पर यह लेख - मेरे जीवन में, भगवान श्रीकृष्ण जी का महत्व। 

बाल्यकाल - भारत वर्ष के ओडिशा प्रदेश भगवान श्री चैतन्य देव जी के लीला स्थली और
जगन्नाथ जी के धाम होने के कारण और मेरा एक हिन्दू परिवार में जन्म होने के कारण बचपन
से ही भगवान श्रीकृष्ण जी के षोड़स अक्षर मंत्र "हरेकृष्ण हरेकृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे" श्रुति में
आगया । इसके साथ उन के लीलाओं की गाथा परिवार के वरिष्ठजनों से सुनने को मिला। 

किशोर अवस्था  में महाभारत सीरियल tv स्क्रीन पर आचुका था। और भगवान श्रीकृष्ण
जी के कुछ जीवन लीला चित्रण देखने को मिला । तत परवर्ती समय में  श्रीकृष्ण
( shrikrishna) tv सीरियल के रूप में सम्पूर्ण जीवन लीला देखने को मिला। श्रीमद्भागवत
गीता ग्रन्थ भी इसी समय मेरे हस्तगत हुआ। 

मेरे  प्रारंभिक युवावस्था के समय श्रीमद्भागवत गीता को सम्पूर्ण रूप से समझ पूर्वक निजी
ओड़िया भाषा में पढ़ने को मिला और भौतिकता प्रधान जीवन से हटकर आध्यात्मिक जीवन की
शुरुआत हुआ। जीवन, मृत्यु, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, मुक्ति, योग, प्राणायाम, आदि शब्दों से
परिचित हुआ सर्वोपरि ईश्वर संबंध में कई जिज्ञासा का जन्म हुआ। जो मेरे आगे की जीवन को
बदल दिया। और भगवान श्रीकृष्ण जी के आध्यात्मिक स्वरूप का ज्ञान हुआ। उन के क्रांति कारी
जीवन, प्रेम माधुर्य मय जीवन आदि विभिन्न पहलुओं पर समय समय पर अधिकाधिक जानने को
मिला।

  इसी समय संघ प्रचारक के रूप में परिव्राजक जीवन में एक बार भगवान के प्रतिज्ञा रूप
में एक कैलेंडर प्राप्त हुआ और आध्यात्मिक जीवन को स्वीकार करने में बहुत ही सुगम हुआ।

ततपरवर्ती मेरे मध्यवर्ती युवावस्था में  आध्यात्मिक जीवन के शुरुआत के समय पूज्य गुरूजी
के कृपाप्रसाद से कृष्णतत्व का आत्मसात और ज्ञान हुआ। श्रीमद्भागवत गीता, मधुराष्टकं, नारायण
स्तुति, विष्णु सहस्रनाम, भागवत, आदि ग्रंथों के प्रसाद रूप से उन के तात्विक स्वरूप का और
अधिक विस्तार से ज्ञान मिला।

मीराबाई, नामदेव, पुण्डरीक, ध्रुव, प्रहल्लाद, सुदामा, नारद जी के जीवन प्रसंग और साहित्य से
उन के भक्त प्रेम की ज्ञान मिला।

(क्रमसः)

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