Wednesday, 12 April 2017

इन सारी उपलब्धियों से क्या लाभ? - गुर्वष्टकम्







गुर्वष्टकम्


श्रीमद आद्य शंकराचार्य द्वारा 800 AD में विरचित गुर्वष्टकम एक बहुत प्रचलित संस्कृत काव्य है | जो की अध्यात्मिक जिज्ञासुओं के लिए बहुत ही उपादेय सिद्ध हुआ है | इतना प्राचीन होते हुए भी यह काव्य वैराग्य को पोषित करने में समर्थ है | आजकल संस्कृत बहुत लोगों के लिए दुर्बोध हेतु इसका हिंदी भावार्थ को ही पढने के लिए लिया गया है | आशा है हम सभीको अवश्य ही प्रेरणा मिलेगी |
भावार्थ इस प्रकार है -
       यदि शरीर रुपवान हो, पत्नी भी रूपसी हो और सत्कीर्ति चारों दिशाओं में विस्तरित हो, मेरु पर्वत के तुल्य अपार धन हो, किंतु गुरु (जो आत्मपद में विश्रांति पायेहुए हैं ) के श्रीचरणों में यदि मन आसक्त न हो तो इन सारी उपलब्धियों से क्या लाभ ।

      सुन्दरी पत्नी, धन, पुत्र-पौत्र, घर एवं स्वजन आदि प्रारब्ध से सर्व सुलभ हो किंतु गुरु के श्रीचरणों में मन की आसक्ति न हो तो इस प्रारब्ध-सुख से क्या लाभ?

वेद एवं षटवेदांगादि शास्त्र जिन्हें कंठस्थ हों, जिनमें सुन्दर काव्य-निर्माण की प्रतिभा हो, किंतु उसका मन यदि गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न हो तो इन सदगुणों से क्या लाभ?


जिन्हें विदेशों में समादर मिलता हो, अपने देश में जिनका नित्य जय-जयकार से स्वागत किया जाता हो और जो सदाचार-पालन में भी अनन्य स्थान रखता हो, यदि उसका भी मन गुरु के श्रीचरणों के प्रति अनासक्त हो तो इन सदगुणों से क्या लाभ?


जिन महानुभाव के चरणकमल पृथ्वीमण्डल के राजा-महाराजाओं से नित्य पूजित रहा करते हों, किंतु उनका मन यदि गुरु के श्री चरणों में आसक्त न हो तो इसे सदभाग्य से क्या लाभ?


दानवृत्ति के प्रताप से जिनकी कीर्ति दिगदिगान्तरों में व्याप्त हो, अति उदार गुरु की सहज कृपादृष्टि से जिन्हें संसार के सारे सुख-ऐश्वर्य हस्तगत हों, किंतु उनका मन यदि गुरु के श्रीचरणों में आसक्तिभाव न रखता हो तो इन सारे ऐश्वर्यों से क्या लाभ?


जिनका मन भोग, योग, अश्व, राज्य, धनोपभोग और स्त्रीसुख से कभी विचलित न हुआ हो, फिर भी गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न बन पाया हो तो इस मन की अटलता से क्या लाभ?


जिनका मन वन या अपने विशाल भवन में, अपने कार्य या शरीर में तथा अमूल्य भंडार में आसक्त न हो, पर गुरु के श्रीचरणों में भी यदि वह मन आसक्त न हो पाये तो उसकी सारी अनासक्तियों का क्या लाभ?


अमूल्य मणि-मुक्तादि रत्न उपलब्ध हो, रात्रि में समलिंगिता विलासिनी पत्नी भी प्राप्त हो, फिर भी मन गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न बन पाये तो इन सारे ऐश्वर्य-भोगादि सुखों से क्या लाभ?


जो यती, राजा, ब्रह्मचारी एवं गृहस्थ इस गुरु-अष्टक का पठन-पाठन करता है और जिसका मन गुरु के वचन में आसक्त है, वह पुण्यशाली शरीरधारी अपने इच्छितार्थ एवं ब्रह्मपद इन दोनों को सम्प्राप्त कर लेता है यह निश्चित है।





ॐ गुरु ॐ गुरु




Ref. for sanskrit - http://www.hariomgroup.org/hariombooks_paath/Hindi/GuruAshtakam.htm -










Sunday, 9 April 2017

संस्कृत बनेगी नासा की भाषा




(जागरण न्यूज़ )

     कहीं संस्कृत को विदेशी अपनी मातृभाषा बनाकर पैटेंट ना करवा लें....नासा के वैज्ञानिकों ने संस्कृत कई बिमारीयों को दूर करने वाली भाषा । अंतरिक्ष में भी सुनाई दिये संस्कृत के शब्द.... वैज्ञानिक आश्चर्य चकित । विदेशों में स्कूलों में कम्पलसरी सब्जेक्ट किया जा रहा है संस्कृत ।
देवभाषा संस्कृत की गूंज अंतरिक्ष में सुनाई । इसके वैज्ञानिक पहलू जानकर अमेरिका नासा की भाषा बनाने की कसरत में जुटा हुआ है । इस प्रोजेक्ट पर भारतीय संस्कृत विद्वानों के इन्कार के बाद अमेरिका अपनी नई पीढ़ी को इस भाषा में पारंगत करने में जुट गया है।
गत दिनों आगरा दौरे पर आए अरविंद फाउंडेशन [इंडियन कल्चर] पांडिचेरी के निदेशक संपदानंद मिश्रा ने ‘जागरण’ से बातचीत में यह रहस्योद्घाटन किया कि नासा के वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने 1985 में भारत से संस्कृत के एक हजार प्रकांड विद्वानों को बुलाया था। उन्हें नासा में नौकरी का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने बताया कि संस्कृत ऐसी प्राकृतिक भाषा है, जिसमें सूत्र के रूप में कंप्यूटर के जरिए कोई भी संदेश कम से कम शब्दों में भेजा जा सकता है। विदेशी उपयोग में अपनी भाषा की मदद देने से उन विद्वानों ने इन्कार कर दिया था।
  


  ( http://www.ibtl.in/news/international/1815/nasa-to-echo-sanskrit-in-space-website-confirms-its-mission-sanskrit/ )
इसके बाद कई अन्य वैज्ञानिक पहलू समझते हुए अमेरिका ने वहां नर्सरी क्लास से ही बच्चों को संस्कृत की शिक्षा शुरू कर दी है। नासा के ‘मिशन संस्कृत’ की पुष्टि उसकी वेबसाइट भी करती है। उसमें स्पष्ट लिखा है कि 20 साल से नासा संस्कृत पर काफी पैसा और मेहनत कर चुकी है। साथ ही इसके कंप्यूटर प्रयोग के लिए सर्वश्रेष्ठ भाषा का भी उल्लेख है।
            संस्कृत के बारे में आज की पीढ़ी के लिए आश्चर्यजनक तथ्य ————-

            1. कंप्यूटर में इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी भाषा।
संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1987

           2. सबसे अच्छे प्रकार का कैलेंडर जो इस्तेमाल किया जा रहा है, हिंदू कैलेंडर है (जिसमें नया साल सौर प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है)
संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी

            3. दवा के लिए सबसे उपयोगी भाषा अर्थात संस्कृत में बात करने से व्यक्ति स्वस्थ और बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि जैसे रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश(Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।
संदर्भ: अमेरीकन हिन्दू यूनिवर्सिटी (शोध के बाद)

          4. संस्कृत वह भाषा है जो अपनी पुस्तकों वेद, उपनिषदों, श्रुति, स्मृति, पुराणों, महाभारत, रामायण आदि में सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी(Technology) रखती है।
संदर्भ: रशियन स्टेट यूनिवर्सिटी, नासा आदि

(नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों है जो वे अध्ययन का उपयोग कर रहे हैं)
(असत्यापित रिपोर्ट का कहना है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं। दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्तकरने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय इंडिया (भारत) में नहीं है।
                5. दुनिया की सभी भाषाओं की माँ संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस भाषा से प्रभावित है।
संदर्भ: यूएनओ
                6. नासा वैज्ञानिक द्वारा एक रिपोर्ट है कि अमेरिका 6 और 7 वीं पीढ़ी के सुपर कंप्यूटर संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कंप्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके।
परियोजना की समय सीमा 2025 (6 पीढ़ी के लिए) और 2034 (7 वीं पीढ़ी के लिए) है, इसके बाद दुनिया भर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषा क्रांति होगी।
                7. दुनिया में अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है।
संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1985
            8. संस्कृत भाषा वर्तमान में “उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी” तकनीक में इस्तेमाल की जा रही है। (वर्तमान में, उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी तकनीक सिर्फ रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में ही मौजूद हैं। भारत के पास आज “सरल किर्लियन फोटोग्राफी” भी नहीं है )
                 9. अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया वर्तमान में भरतनाट्यम और नटराज के महत्व के बारे में शोध कर रहे हैं। (नटराज शिव जी का कॉस्मिक नृत्य है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने शिव या नटराज की एक मूर्ति है )
                   10. ब्रिटेन वर्तमान में हमारे श्री चक्र पर आधारित एक रक्षा प्रणाली पर शोध कर रहा है।
लेकिन यहाँ यह बात अवश्य सोचने की है,की आज जहाँ पूरे विश्व में संस्कृत पर शोध चल रहे हैं,रिसर्च हो रहीं हैं वहीँ हमारे देश के लुच्चे नेता संस्कृत को मृत भाषा बताने में बाज नहीं आ रहे हैं अभी ३ वर्ष पहले हमारा एक केन्द्रीय मंत्री बी. एच .यू . में गया था तब उसने वहां पर संस्कृत को मृत भाषा बताया था. यह बात कहकर वह अपनी माँ को गाली दे गया, और ये वही लोग हैं जो भारत की संस्कृति को समाप्त करने के लिए यहाँ की जनता पर अंग्रेजी और उर्दू को जबरदस्ती थोप रहे हैं.
संस्कृत को सिर्फ धर्म-कर्म की भाषा नहीं समझना चाहिए-यह लौकिक प्रयोजनों की भी भाषा है. संस्कृत में अद्भुत कविताएं लिखी गई हैं, चिकित्सा, गणित, ज्योतिर्विज्ञान, व्याकरण, दशर्न आदि की महत्वपूर्ण पुस्तकें उपलब्ध हैं. केवल आध्यात्मिक चिंतन ही नहीं है, बल्कि दाशर्निक ग्रंथ भी उपलब्ध हैं,किन्तु रामायण,और गीता की भाषा को आज भारत में केवल हंसी मजाक की भाषा बनाकर रख दिया गया है,भारतीय फिल्मे हों या टी.वी. प्रोग्राम ,उनमे जोकरों को संस्कृत के ऐसे ऐसे शब्द बनाकर लोगों को हँसाने की कोशिश की जाती है जो संस्कृत के होते ही नहीं हैं, और हमारी नई पीढी जिसे संस्कृत से लगातार दूर किया जा रहा है,वो संस्कृत की महिमा को जाने बिना ही उन कॉमेडी सीनों पर दात दिखाती है.
अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया जैसे देशों में नर्सरी से ही बच्चों को संस्कृत पढ़ाई जाने लगी है, कहीं एसा न हो की हमारी संस्कृत कल वैश्विक भाषा बन जाये और हमारे नवयुवक संस्कृत को केवल भोंडे और भद्दे मसखरों के भाषा समझते रहें. अपने इस लेख से मै भारत के यूवाओं को आह्वान करता हूँ की आने वाले समय में संस्कृत कम्पुटर की भाषा बन्ने जा रही है ,सन २०२५ तक नासा ने संस्कृत में कार्य करने का लक्ष्य रखा है. अतः अंग्रेजी भाषा के साथ साथ वे अपने बच्चों को संस्कृत का ज्ञान जरूर दिलाएं ,और संस्कृत भाषा को भारत में उपहास का कारन न बनाये ,क्यों की संस्कृत हमारी देव भाषा है ,संस्कृत का उपहास करके हम अपनी जननी का उपहास कर रहे है



http://www.thehindu.com/news/hindi-is-gaining-popularity-over-sanskrit-among-germans/article615719.ece
http://www.vedicsciences.net/articles/sanskrit-nasa.html
http://www.scribd.com/doc/31774203/NASA-Sanskrit-Report
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NASA to echo Sanskrit in space, website confirms its Mission Sanskrit
www.ibtl.in
वंदेमातरम


सोर्स -- http://hindi.ibtl.in/news/international/1978/article.ibtl/ 









Wednesday, 25 January 2017

मनोवैज्ञानिक रोचक तथ्य















मनोवैज्ञानिक रोचक तथ्य : कई बार दूसरों का तो छोड़िए, अपना ही व्यवहार हमारी समझ से परे हो जाता हैं. ये 42 रोचक तथ्य पढ़ने के बाद आप किसी को भी बहुत अंदर तक जान जाओगें.Psychology facts - मनोवैज्ञानिक रोचक तथ्य

1. यदि आप किसी को अपने GOAL बता देते हो तो आपके सफ़ल होने की संभावना कम हो जाती हैं.. ऐसा इसलिए, Q कि आप motivation lose कर देते हैं.

2. हम जितना ज्यादा दूसरों पर खर्च करते हैं उतने ज्यादा खुश रहते हैं.

3. 90% लोग मैसेज़ में वो चीज़े लिखते हैं जिन्हें वो कह नही सकते.

4. आपका पसंदीदा गाना आपको इसलिए पसंद हैं Q कि वह आपकी ज़िंदगी की असल घटना के साथ जुड़ा हुआ होता हैं.

5. 18 से 33 साल की उम्र तक आदमी सबसे ज्यादा तनाव में रहता हैं.

6. किसी भी आदमी को प्यार में पड़ने के लिए सिर्फ़ 4 मिनट ही काफी होते हैं.

7. Comedian और मजाकिया लोग दूसरो के मुकाबले ज्यादा उदास रहते हैं.

8. आधे से ज्यादा समय आपका दिमाग केवल यादें दोहराता रहता हैं.

9. भावनाओं को छिपाओगें.. उस व्यक्ति के लिए उतना ही मुश्किल होगा आपको समझना.

10. यह भी संभव हैं, कि किसी की मौत दिल टूटने से हो इसे “Stress Cardiomyopathy” कहते हैं.

11. जब कोई हमें ignore करता हैं तो वही chemical रिलिज़ होता हैं जो चोट लगने पर होता हैं.

12. Smarter लोग खुद को कम मानते हैं लेकिन अनज़ान लोग उन्हें brilliant समझते हैं.

13. यदि आप पुराने समय को याद करते हैं तो उससे ज्यादा ये याद आता हैं कि इसे आखिरीं बार कब याद किया था. 

14. जितनी चिंता आजकल के बच्चे दिखाते हैं 1950 में उतनी चिंता तो दिमागी मरीज़ दिखाते थे.

15. जब किसी से प्यार होता हैं तो हमारा दिमाग इसमें कुछ नही करता करता बस एक chemical रिलिज़ होता हैं.

16. जब कोई कहता हैं कि आपसे एक प्रश्न पूछना हैं तो हाल ही में किए गए सारे बुरे काम एक मिनट के अंदर याद आ जाते हैं.

17. जो लोग ज्यादा हँसते हैं वो ज्यादा दर्द सहन कर सकते हैं.

18. हम जो सोचते हैं उसका 90% हिस्सा सीधा हमारे मूड पर असर करता हैं एक गलत विचार पूरे मूड को खराब कर सकता हैं.

19. लोग आपके बारे में अच्छा सुनने पर शक करते हैं लेकिन बुरा सुनने पर तुरंत यकीन कर लेते हैं.

20. किसी के साथ ज्यादा समय बिताने से आप उसकी आदतें अपनानें लगते हैं इसलिए सोच-समझकर दोस्त बनाएं.

21. इंसान के लिए सबसे मुश्किल कामों में से एक हैं.. खुद को ये समझाना कि अब मुझे किसी की परवाह नही हैं.

22. 90% लोगो का दिमाग ये सोचता हैं कि काश कुछ पल के लिए समय पीछे चला जाएं.

23. अगर कोई नाख़ून चबाता हैं तो इसका मतलब वह बहुत परेशान हैं.

24. फोन खो जाने पर होने वाली चिंता उस चिंता के समान होती हैं, जब व्यक्ति अपनी मौत के करीब होता हैं.

25. यदि कोई ज्यादा तकियें लेकर सोता हैं तो इसका मतलब वह खुद को अकेला महसूस करता हैं.

26. हम दिन की बज़ाय रात को आसानी से रो सकते हैं.

27. यदि आप किसी के बारे में जागते हुए भी सपने देखते हैं तो इसका मतलब हैं आप उसे मिस कर रहे हैं.

28. कोई बात छुपा रहा हैं या नही ये पता करने की भी एक ट्रिक हैं.. जिस चीज़ को वो छुपा रहा हैं उसी के बारे में बात करना शुरू कर दें ऐसा करने पर वह हड़बड़ा जाता हैं. आंखें चुराने लगता हैं और इसी घबराहट में या तो चुप रहता हैं या फिर बोलता भी हैं तो सामान्य से तेज़ गति से.

29. अगर एक व्यक्ति कम बोलता हैं, लेकिन तेजी से बोलता हैं- इसका मतलब हैं कि वह एक गोपनीय व्यक्तित्व वाला शख्स हैं, जो ज़्यादातर बातें अपने तक ही रखता हैं. 

30. अगर कोई छोटी-छोटी बात पर गुस्सा हो जाता हैं, इसका मतलब उसे आपके साथ और प्यार की जरूरत हैं.

31. अगर किसी पुरुष को किसी की बात से तकलीफ़ पहुंची हो, तो वो उस बात को भूल जाते हैं, लेकिन माफ़ नहीं करते। लेकिन अगर एक महिला को किसी की बात से तकलीफ़ पहुंची हो, तो वो माफ़ कर देती हैं, लेकिन भूलती नहीं.

32. अगर कोई छोटी-छोटी बात पर रोता हैं, इसका मतलब हैं कि वह नरम दिल स्वभाव का हैं.

33. जो लोग अपने प्रियजनों के सामने फ़ोन की स्क्रीन को नीचे की तरफ रखते हैं, तो उनके मन में खोट हो सकता हैं.

34. अगर एक व्यक्ति बहुत सोता हैं तो इसका मतलब हैं कि वह अंदर ही अंदर घुट रहा हैं और किसी बात से दुःखी हैं.

35. अगर कोई रो नहीं सकता, इसका मतल़ब कि वो इंसान भावनात्मक रूप से कमज़ोर हैं रोना एक व्यक्ति को कमज़ोर नहीं, बल्कि भावनात्मक रूप से मज़बूत बनाता हैं. 

36. अगर कोई असामान्य तरीके से खाना खाता हैं इसका मतलब हैं कि वह किसी बात को लेकर बहुत चिंतित हैं.

37. आपका दिमाग लोगो की बोरिंग बातो को री-राईट कर उन्हें मज़ेदार बना सकता हैं.

38. आप जिस तरह के गाने सुनते हैं उसी तरह से आप दुनिया को देखने लग जाते हैं.

39. तुम बेश्क ये Article Online पढ़ रहें हैं लेकिन हमारी आंखे खुश नही हैं Mobile की स्क्रीन से बहुत आसान होता हैं किताबों में पढ़ना.

40. सोने से पहले आप जिस आदमी के बारे में सोचते हैं वही आपकी खुशी और दर्द का कारण हैं.

41. हम किसी भी चीज़ को असलियत में करते समय इतने खुश नही होते जितनें बादें उन्हें याद करते समय होते हैं.

42. खुशी का पहला आंसू दाहिनी आँख से और दुख का पहला आंसू बाईं आँख से निकलता हैं.



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Tuesday, 24 January 2017

परमपुरुषार्थ




परमपुरुषार्थ वर्णन

वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! यह जो शब्द है कि "दैव हमारी रक्षा करेगा" सो किसी मूर्ख की कल्पना है । हमको तो दैव का आकार कोई दृष्टि नहीं आता और न कोई दैव का आकार ही जान पड़ता है और न दैव कुछ करता ही है । मूर्ख लोग दैव दैव कहते हैं, पर दैव कहते हैं, पर दैव कोई नहीं है, इसका पूर्व का कर्म ही दैव है । हे रामजी! जिस पुरुष ने अपने पुरुषार्थ का त्याग किया है और देवपरायण हुआ है कि वह हमारा कल्याण करेगा वह मूर्ख है,क्योंकि अग्नि में जा पड़े और दैव निकाल ले तब जानिये कि कोई दैव भी है, पर सो तो नहीं होता । स्नान, दान, भोजन आदिक त्याग करके चुप हो बैठे और आप ही दैव कर जावे सो भी किये बिना नहीं होता इससे दैव कोई नहीं, अपना पुरुषार्थ ही कल्याणकर्ता है । हे राम जी! जीव का किया कुछ नहीं होता और दैव ही करने वाला होता तो शास्त्र और गुरु का उपदेश भी न होता । इससे स्पष्ट है कि सत्‌शास्त्र के उपदेश से अपने द्वारा इसको वाञ्छित पदवी प्राप्त होती है इससे और जो कोई दैव है सो व्यर्थ है । इस भ्रम को त्याग करके सन्तों और शास्त्रों के अनुसार पुरुषार्थ करे तब दुःख से मुक्त होगा । हे रामजी! और दैव कोई नहीं है इसका पुरुषार्थ जो स्पन्द है सोई दैव है, हे रामजी! जो कोई और दैव करनेवाला होता तो जब जीव शरीर को त्यागता है और शरीर नष्ट हो जाता है--कुछ क्रिया नहीं होती क्योंकि चेष्टा करनेवाला त्याग जाता है तब भी शरीर से चेष्टा कराता सो तो चेष्टा कुछ नहीं होती, इससे जाना जाता है कि दैव शब्द व्यर्थ है । हे रामजी! पुरुषार्थ की वार्ता अज्ञानी जीव को भी प्रत्यक्ष है कि अपने पुरुषार्थ बिना कुछ नहीं होता । गोपाल भी जानता है कि मैं गौओं को न चराऊँ तो भूखी ही रहेंगी । इससे वह और दैव के आश्रय नहीं बैठ रहता, आप ही चरा ले आता है । हे रामजी! दैव की कल्पना भ्रम से करते हैं । हमको तो दैव कोई दृष्टि नहीं आता और हाथ, पाँव, शरीर भी दैव का कोई दृष्टि नहीं आता । अपने पुराषार्थ से ही सिद्धता दृष्टि आती है । जो कोई आकार से रहित दैव कल्पिये तो भी नहीं बनता , क्योंकि निराकार और साकार का संयोग कैसे हो । हे रामजी! दैव कोई नहीं है केवल अपना पुरुषार्थ ही दैवरूप है । जो राजा ऋद्धि सिद्धि संयुक्त भासता है सो भी अपने पुरुषार्थ से ही हुआ है । हे रामजी! ये जो विश्वामित्र हैं,इन्होंने दैव शब्द दूर ही से त्याग दिया है । ये भी अपने पुरुषार्थ से ही क्षत्रिय से ब्राह्मण हुए हैं और भी जो बड़े बड़े विभूतिमान् हुए हैं सो भी अपने पुरुषार्थ से ही दृष्टि आते हैं । हे रामजी! जो दैव पढ़े बिना पण्डित करे तो जानिये दैव ने किया, पर पढ़े बिना तो पण्डित नहीं होता । जो अज्ञानी से ज्ञानवान् होते हैं सो भी अपने पुरुषार्थ से ही होते हैं । इससे दैव कोई नहीं । मिथ्या भ्रम को त्यागकर सन्त जनों और सत्‌शास्त्रों के अनुसार संसारसमुद्र तरने का प्रयत्न करो । तुम्हारे पुरुषार्थ बिना दैव कोई नहीं । जो और दैव होता तो बहुत बेर कियावाला भी अपनी क्रिया को त्याग के सो रहता कि दैव आप ही करेगा, पर ऐसे तो कोई नहीं करता । इससे अपने पुरुषार्थ बिना कुछ सिद्ध नहीं होता । जो कुछ इसका किया न होता तो पाप करनेवाले नरक न जाते और पुण्य करनेवाले स्वर्ग न जाते परन्तु पाप करने बाले नरक में जाते हैं और पुण्य करनेवाले स्वर्ग में जाते हैं; इससे जो कुछ प्राप्त होता है सो अपने पुरुषार्थ से ही होता है । हे रामजी! जो कोई ऐसा कहे कि कोई दैव करता है तो उसका शिर काटिये जो वह दैव के आश्रय जीता रहे तो जानिये कि कोई दैव है, पर सो तो जीता कोई भी नहीं । इससे दैव शब्द को मिथ्या भ्रम जानके सन्त जनों और सत्‌शास्त्रों के अनुसार अपने पुरुषार्थ से आत्मपद में स्थित हो ।

*इति श्रीयोगवाशिष्ठे मुमुक्षुप्रकरणे परमपुरुषार्थ वर्णनन्नामष्टमस्सर्गः ॥ 8 ॥*
# ShriYogVashishth #Maharamayan

Thursday, 5 January 2017

ॐ कार की महिमा- Omkar mahima




      ॐ एक गहरा रहस्य है, जिसे जिया जा सकता है, जाना जा सकता है, लेकिन उसे कहना, समझाना या व्याख्या संभव नहीं है, ॐ को चेतना की गहराई में प्रवेश करके अनुभव किया जासकता हैं, कि अस्तित्व में प्रत्येक घटना के आधार में नाद है, एक रहस्यमय संगीत है, जब कोई व्यक्ति जन्म लेता है, या उसकी मृत्यु होती है, तब भी एक आकाशीय संगीत गूंजता है, जिसमें उस व्यक्ति की कार्मिक यात्रा के साथ ही उसके संभावी जीवन की समस्त रूपरेखा छिपी होती है, जो भी सवेदनशील व अतीन्द्रिय व्यक्ति इस संगीत को सुनने में सक्षम होता है, वो उस व्यक्ति के जीवन के बारे में सटीक इशारे कर सकता है, इसी प्रकार कोई भी घटना घटे तो उसके साथ ही एक संगीत जन्म लेता है, लम्बे समय तक साधकों और सिद्धों ने इस रहस्य का अवलोकन किया और पाया कि गहरी आध्यात्मिक घटनाओं का एक विशेष संगीत है, इसे नाद भी कह सकते हैं, अनुगूंज भी कह सकते हैं, गहरे साधकों और सिद्धों ने पाया कि जब आकार विलीन होते हैं, सीमायें विदा होती हैं, व्यक्तित्व विसर्जित होता है, शरीर और मन के बंधन व ग्रंथियां तिरोहित हो जाती हैं, और चेतना अनादि व अनंत स्रोत में प्रवेश कर जाती है, तब भी एक संगीत अनुभव में आता है, यह संगीत शेष समस्त संगीत से भिन्न और अतुलनीय होता है, यही अनाहत नाद है, यह अकारण है, शाश्वत है, सारे सृजन का स्रोत है, इस अनाहत नाद या ॐ को तब अनुभव किया जाता है जब शरीर, मन और चेतना लयबद्ध होकर जागतिक लय से एकाकार हो जाते हैं, जब द्वैत का जगत समाप्त होता है और अद्वैत प्रकट होता है, जब हम साक्षी के आकाश में स्थित हो जाते हैं और जीवन बस एक लीला मात्र रह जाता है, यह ॐ तो अहर्निश गूँज रहा है, यह अक्षर है अर्थात इसका क्षय नहीं होता, इस क्षर जीवन से अक्षर जीवन में प्रवेश कर जाना ही अध्यात्म का उद्देश्य है, स्वयं के भीतर के शांत, स्थिर, मौन, निस्तरंग, निरुद्देश्य, अकारण, अनादि व अनंत केंद्र में प्रवेश कर जाना ही एक मात्र साधना है। और यह साधना है ॐ में प्रवेश कर जाना, ऊपर इस केंद्र को या इस अवस्था को बताने के लिए जितने भी शब्दों का उपयोग किया गया है उसे बस एक ॐ कहकर ही कह दिया जाता है। इसीलिए सिद्धों ने इस ॐ के प्रतीक को खोजा कि व्यर्थ में बहुत कुछ कहने के बजाय बस साधक से इतना कहना पर्याप्त है, कि ॐ को खोजो या ॐ में प्रवेश कर जाओ। ॐ कह दिया तो जो कुछ सारभूत है वो कह दिया, अब बस उसका ही विस्तार होगा.यही सिद्धों और सद्गुरुओं की अंतर्दृष्टि रही।







source--
आचार्य नीरज मिश्रा जी: ॐ क्या है ?: ॐ एक गहरा रहस्य है, जिसे जिया जा सकता है, जाना जा सकता है, लेकिन उसे कहना, समझाना या व्याख्या संभव नहीं है, ॐ को चेतना की गहराई में प्रवेश क...