जब तक यह लोग स्वयं को चमार जाति के रूप में स्वीकारते रहेगें तब तक वे इन शब्दों में ही मान अपमान ढूँढते रहेगें।
मुगल काल में ब्राह्मणों और क्षत्रियों को दो रास्ते दिए गए, या तो इस्लाम कबूल करो या फिर मुसलमानों का मैला ढोओ क्योंकि तब भारतीय समाज में इन दोनों समुदायों का अत्यंत सम्मान था और इनके लिए ऐसा घृणित कार्य करना मर जाने के समान था। इसीलिए मुगलों ने इनके धर्मान्तरण के लिए यह तरीका अपनाया। जिन ब्राहमणों और क्षत्रियों ने मैला ढोने की प्रथा को स्वीकार करने के उपरांत अपने जनेऊ को तोड़ दिया, अर्थात उपनयन संस्कार को भंग कर दिया, वो भंगी कहलाए !
मेहतर इनके उपकारों के कारण ! तत्कालिन हिंदू समाज ने इनके मैला ढोने की नीच प्रथा को भी 'महत्तर' अर्थात महान और बड़ा करार दिया था, जो अपभ्रंश रूप में 'मेहतर' हो गया। जो हिंदू डर और अत्याचार के मारे इस्लाम धर्म स्वीकार करते चले गए, उन्हीं के वंशज आज भारत में मुस्लिम आबादी हैं।
जिन ब्राह्मणों और क्षत्रियों ने मरना स्वीकार कर लिया उन्हें काट डाला गया और उनके असहाय परिजनों को इस्लाम कबूल नहीं करने की सजा के तौर पर अपमानित करने के लिए नीच मैला ढोने के कार्य में धकेल दिया गया। वही लोग भंगी और मेहतर कहलाए।
*चमार कोई नीच जाति नहीँ, बल्कि सनातन धर्म के रक्षक है...*
चमार कोई नीच जाति नहीँ, वो असल में चंवरवंश की क्षत्रिय जाति है। यह खुलासा डॉक्टर विजय सोनकर की पुस्तक – “हिन्दू चर्ममारी जाति:एक स्वर्णिम गौरवशाली राजवंशीय इतिहास” में हुआ है। इस किताब में डॉ सोनकर ने लिखा है कि – “विदेशी विद्वान् कर्नल टॉड द्वारा पुस्तक “राजस्थान का इतिहास” में चंवरवंश के बारे में बहुत विस्तार में लिखा गया है।”
डॉक्टर विजय सोनकर के अनुसार प्राचीनकाल में ना तो यह शब्द पाया जाता है, ना हीं इस नाम की कोई जाति है। ऋग्वेद में बुनकरों का उल्लेख तो है, पर वहाँ भी उन्हें चमार नहीं बल्कि तुतुवाय के नाम से सम्बोधित किया गया है। सोनकर कहते हैं कि चमार शब्द का उपयोग पहली बार सिकंदर लोदी ने किया था। ये वो समय था जब हिन्दू संत रविदास का चमत्कार बढ़ने लगा था अत: मुगल शासन घबरा गया। सिकंदर लोदी ने सदना कसाई को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा। वह जानता था कि यदि संत रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू इस्लाम स्वीकार कर लेंगे।
लेकिन उसकी सोच धरी की धरी रह गई, स्वयं सदना कसाई शास्त्रार्थ में पराजित हो कोई उत्तर न दे सके और संत रविदास की भक्ति से प्रभावित होकर उनका भक्त यानी वैष्णव (हिन्दू) हो गए। उनका नाम सदना कसाई से रामदास हो गया। दोनों संत मिलकर हिन्दू धर्म के प्रचार में लग गए। जिसके फलस्वरूप सिकंदर लोदी ने क्रोधित होकर इनके अनुयायियों को अपमानित करने के लिए पहली बार “चमार“ शब्द का उपयोग किया था। उन्होंने संत रविदास को कारावास में डाल दिया। उनसे कारावास में खाल खिचवाने, खाल-चमड़ा पीटने, जूती बनाने इत्यादि काम जबरदस्ती कराया गया। उन्हें मुसलमान बनाने के लिए बहुत शारीरिक कष्ट दिए गए लेकिन उन्होंने कहा : ”वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान, फिर मै क्यों छोडू इसे, पढ़ लू झूठ कुरान। वेद धर्म छोडू नहीं, कोसिस करो हज़ार, तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार॥”
यातनायें सहने के पश्चात् भी वे अपने वैदिक धर्म पर अडिग रहे और अपने अनुयायियों को विधर्मी होने से बचा लिया। शीघ्र ही चंवरवंश के वीरों ने दिल्ली को घेर लिया और सिकन्दर लोदी को संत को छोड़ना ही पड़ा। संत रविदास की मृत्यु चैत्र शुक्ल चतुर्दशी विक्रम संवत १५८४ रविवार के दिन चित्तौड़ में हुई। आज के छह सौ वर्ष पहले चमार जाती थी ही नहीं। इतने ज़ुल्म सहने के बाद भी इस वंश के हिन्दुओं ने धर्म और राष्ट्र हित को नहीं त्यागा, गलती हमारे भारतीय समाज में है।
नोट : हिन्दू समाज में छुआ-छूत, भेद-भाव, ऊँच-नीच का भाव था ही नहीं, ये सब कुरीतियाँ मुगल कालीन, अंग्रेज कालीन और भाड़े के वामपंथी व् हिन्दू विरोधी इतिहासकारों की देन है। चमार जाति नही है कर्म अधारित नाम दिया है।