Wednesday, 25 September 2019

चमार जाति का इतिहास





जब तक यह लोग स्वयं को चमार जाति के रूप में स्वीकारते रहेगें तब तक वे इन शब्दों में ही मान अपमान ढूँढते रहेगें।

मुगल काल में ब्राह्मणों और क्षत्रियों को दो रास्ते दिए गए, या तो इस्लाम कबूल करो या फिर मुसलमानों का मैला ढोओ क्योंकि तब भारतीय समाज में इन दोनों समुदायों का अत्यंत सम्मान था और इनके लिए ऐसा घृणित कार्य करना मर जाने के समान था। इसीलिए मुगलों ने इनके धर्मान्तरण के लिए यह तरीका अपनाया। जिन ब्राहमणों और क्षत्रियों ने मैला ढोने की प्रथा को स्वीकार करने के उपरांत अपने जनेऊ को तोड़ दिया, अर्थात उपनयन संस्कार को भंग कर दिया, वो भंगी कहलाए !

मेहतर इनके उपकारों के कारण ! तत्कालिन हिंदू समाज ने इनके मैला ढोने की नीच प्रथा को भी 'महत्तर' अर्थात महान और बड़ा करार दिया था, जो अपभ्रंश रूप में 'मेहतर' हो गया। जो हिंदू डर और अत्याचार के मारे इस्लाम धर्म स्वीकार करते चले गए, उन्हीं के वंशज आज भारत में मुस्लिम आबादी हैं।
जिन ब्राह्मणों और क्षत्रियों ने मरना स्वीकार कर लिया उन्हें काट डाला गया और उनके असहाय परिजनों को इस्लाम कबूल नहीं करने की सजा के तौर पर अपमानित करने के लिए नीच मैला ढोने के कार्य में धकेल दिया गया। वही लोग भंगी और मेहतर कहलाए।

*चमार कोई नीच जाति नहीँ, बल्कि सनातन धर्म के रक्षक है...*
चमार कोई नीच जाति नहीँ, वो असल में चंवरवंश की क्षत्रिय जाति है। यह खुलासा डॉक्टर विजय सोनकर की पुस्तक – “हिन्दू चर्ममारी जाति:एक स्वर्णिम गौरवशाली राजवंशीय इतिहास” में हुआ है। इस किताब में डॉ सोनकर ने लिखा है कि – “विदेशी विद्वान् कर्नल टॉड द्वारा पुस्तक “राजस्थान का इतिहास” में चंवरवंश के बारे में बहुत विस्तार में लिखा गया है।”

डॉक्टर विजय सोनकर के अनुसार प्राचीनकाल में ना तो यह शब्द पाया जाता है, ना हीं इस नाम की कोई जाति है। ऋग्वेद में बुनकरों का उल्लेख तो है, पर वहाँ भी उन्हें चमार नहीं बल्कि तुतुवाय के नाम से सम्बोधित किया गया है। सोनकर कहते हैं कि चमार शब्द का उपयोग पहली बार सिकंदर लोदी ने किया था। ये वो समय था जब हिन्दू संत रविदास का चमत्कार बढ़ने लगा था अत: मुगल शासन घबरा गया। सिकंदर लोदी ने सदना कसाई को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा। वह जानता था कि यदि संत रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू इस्लाम स्वीकार कर लेंगे।

लेकिन उसकी सोच धरी की धरी रह गई, स्वयं सदना कसाई शास्त्रार्थ में पराजित हो कोई उत्तर न दे सके और संत रविदास की भक्ति से प्रभावित होकर उनका भक्त यानी वैष्णव (हिन्दू) हो गए। उनका नाम सदना कसाई से रामदास हो गया। दोनों संत मिलकर हिन्दू धर्म के प्रचार में लग गए। जिसके फलस्वरूप सिकंदर लोदी ने क्रोधित होकर इनके अनुयायियों को अपमानित करने के लिए पहली बार “चमार“ शब्द का उपयोग किया था। उन्होंने संत रविदास को कारावास में डाल दिया। उनसे कारावास में खाल खिचवाने, खाल-चमड़ा पीटने, जूती बनाने इत्यादि काम जबरदस्ती कराया गया। उन्हें मुसलमान बनाने के लिए बहुत शारीरिक कष्ट दिए गए लेकिन उन्होंने कहा : ”वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान, फिर मै क्यों छोडू इसे, पढ़ लू झूठ कुरान। वेद धर्म छोडू नहीं, कोसिस करो हज़ार, तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार॥”

यातनायें सहने के पश्चात् भी वे अपने वैदिक धर्म पर अडिग रहे और अपने अनुयायियों को विधर्मी होने से बचा लिया। शीघ्र ही चंवरवंश के वीरों ने दिल्ली को घेर लिया और सिकन्दर लोदी को संत को छोड़ना ही पड़ा। संत रविदास की मृत्यु चैत्र शुक्ल चतुर्दशी विक्रम संवत १५८४ रविवार के दिन चित्तौड़ में हुई। आज के छह सौ वर्ष पहले चमार जाती थी ही नहीं। इतने ज़ुल्म सहने के बाद भी इस वंश के हिन्दुओं ने धर्म और राष्ट्र हित को नहीं त्यागा, गलती हमारे भारतीय समाज में है।

नोट : हिन्दू समाज में छुआ-छूत, भेद-भाव, ऊँच-नीच का भाव था ही नहीं, ये सब कुरीतियाँ मुगल कालीन, अंग्रेज कालीन और भाड़े के वामपंथी व् हिन्दू विरोधी इतिहासकारों की देन है। चमार जाति नही है कर्म अधारित नाम दिया है।




Sunday, 25 August 2019

RSS - राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में बीते हुए वर्ष


     1989 में पहली बार डॉ हेडगेवार जन्म शताब्दी निम्मित स्कूलों में आमंत्रण के अवसर पर बागडीही गांव में सम्मलित हुआ ।

     1994 में स्वाधीन छात्रावास में  संघ कार्यकर्ताओं से संपर्क और संघ में प्रबेश।

     1995 में धनुपाली में प्राथमिक वर्ग के साथ स्नातक पूर्ण होने के बाद विद्यार्थी विस्तारक  के रूप में कार्य  करते समय   स्वदेशी अभियान के दौरान  साप्ताहिक यात्रा।

     इसी समय संघ के  प्रांतीय कार्यकर्ताओं से संपर्क हुआ और संघ के रीती निति के सम्यक ज्ञान हुआ |

     1996 अगस्त में भुबनेश्वर  सूर्यनगर में विस्तारक वर्ग में प्रतिनिधित्व । तत्पश्चात पदमपुर(बरगढ़) खंड विस्तारक
     1998 में झारबन्द ब्लॉक विस्तारक के साथ संघ प्रथम वर्ष पूर्णकिया। 1999 में झारबन्ध पाइकमाल ( ब्लाक )       खंड व तहसील प्रचारक के साथ द्वितीय बर्ष संघ शिक्षा वर्ग भंजनगर (ब्रह्मपुर, ओडिशा  ) में पूर्ण।

     2000 में नागपुर में तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के साथ देवगढ़ जिल्ला के प्रचारक दायित्व संपादन किआ।

     2001 से लेकर 2005 तक संबलपुर जिल्ला के प्रचारक के नाते दायित्व सम्पन्न कर बालेस्वर, तालचेर, फुलवाणी, आनंदपुर, आदि स्थानों में प्रथम व द्वितीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग में प्रशिक्षक दायित्व पूर्ण किआ।

     इसी अंतराल में रज्जु भैया, सुदर्शनजी, मोहनजी, शेषाद्री जी, सुरेश जी, आदि केंद्रीय कार्यकर्ता तथा
हलदेकरजी, भगैय्या जी आदि क्षेत्रीय तथा पालधिकर जी, देशपांडे जी जैसे प्रबृद्ध कार्यकर्ताओं के संपर्क में आया।  और संघ कार्य को प्रत्यक्ष रूप में अनुभव करने की अवसर प्राप्त हुआ।






Religious Demographic Prediction of India




Year- 1948
Hindu : 88.2 %
Muslim: 6 %

Year- 1951
Hindu: 84.1 %
Muslim: 9.8 %

Year- 2011(Estimated )
Hindu: 79.8 %
Muslim: 15.0%

Year- 2011 (Official)
Hindu: 73.2 %
Muslim: 22.6 %

Year- 2017 (Actual)
Hindu: 68.6 %
Muslim: 27.2 %

Year- 2021(Estimated)
Hindu: 65.7 %
Muslim: 32.8 %

Year- 2031 (अनुमान)
Hindu: 60.4 %
Muslim: 38.1 %

Year- 2037 (अनुमान)
Hindu: 55.0 %
Muslim: 43.6 %

Year- 2040 (अनुमान)
Hindu: 30.5%
Muslim: 66.9%

Year- 2041 (अनुमान)
Hindu: 11.2 %
Muslims: 84.5 %

मेरे जीवन में भगवान श्रीकृष्ण



श्री कृष्ण 


  जन्माष्टमी के अवसर पर यह लेख - मेरे जीवन में, भगवान श्रीकृष्ण जी का महत्व। 

बाल्यकाल - भारत वर्ष के ओडिशा प्रदेश भगवान श्री चैतन्य देव जी के लीला स्थली और
जगन्नाथ जी के धाम होने के कारण और मेरा एक हिन्दू परिवार में जन्म होने के कारण बचपन
से ही भगवान श्रीकृष्ण जी के षोड़स अक्षर मंत्र "हरेकृष्ण हरेकृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे" श्रुति में
आगया । इसके साथ उन के लीलाओं की गाथा परिवार के वरिष्ठजनों से सुनने को मिला। 

किशोर अवस्था  में महाभारत सीरियल tv स्क्रीन पर आचुका था। और भगवान श्रीकृष्ण
जी के कुछ जीवन लीला चित्रण देखने को मिला । तत परवर्ती समय में  श्रीकृष्ण
( shrikrishna) tv सीरियल के रूप में सम्पूर्ण जीवन लीला देखने को मिला। श्रीमद्भागवत
गीता ग्रन्थ भी इसी समय मेरे हस्तगत हुआ। 

मेरे  प्रारंभिक युवावस्था के समय श्रीमद्भागवत गीता को सम्पूर्ण रूप से समझ पूर्वक निजी
ओड़िया भाषा में पढ़ने को मिला और भौतिकता प्रधान जीवन से हटकर आध्यात्मिक जीवन की
शुरुआत हुआ। जीवन, मृत्यु, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, मुक्ति, योग, प्राणायाम, आदि शब्दों से
परिचित हुआ सर्वोपरि ईश्वर संबंध में कई जिज्ञासा का जन्म हुआ। जो मेरे आगे की जीवन को
बदल दिया। और भगवान श्रीकृष्ण जी के आध्यात्मिक स्वरूप का ज्ञान हुआ। उन के क्रांति कारी
जीवन, प्रेम माधुर्य मय जीवन आदि विभिन्न पहलुओं पर समय समय पर अधिकाधिक जानने को
मिला।

  इसी समय संघ प्रचारक के रूप में परिव्राजक जीवन में एक बार भगवान के प्रतिज्ञा रूप
में एक कैलेंडर प्राप्त हुआ और आध्यात्मिक जीवन को स्वीकार करने में बहुत ही सुगम हुआ।

ततपरवर्ती मेरे मध्यवर्ती युवावस्था में  आध्यात्मिक जीवन के शुरुआत के समय पूज्य गुरूजी
के कृपाप्रसाद से कृष्णतत्व का आत्मसात और ज्ञान हुआ। श्रीमद्भागवत गीता, मधुराष्टकं, नारायण
स्तुति, विष्णु सहस्रनाम, भागवत, आदि ग्रंथों के प्रसाद रूप से उन के तात्विक स्वरूप का और
अधिक विस्तार से ज्ञान मिला।

मीराबाई, नामदेव, पुण्डरीक, ध्रुव, प्रहल्लाद, सुदामा, नारद जी के जीवन प्रसंग और साहित्य से
उन के भक्त प्रेम की ज्ञान मिला।

(क्रमसः)

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